कितने मरे 47 लाख 5 लाख? कौन सही WHO या भारत सरकार!
हजारों शवदाह गृहों में महीनों तक लागातार जलती लाशें, भारत के हर गली, मुहल्ले और गांव से निकलने वाली चीख, अस्पतलों के अंदर और बाहर जीवन या मौत का इंतजार करते परिजन 4.8 लाख से ज्यादा थे।
Aditya Mishra:
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा जारी किया है। इसके बाद मोदी सरकार सहित उसके हितैसी और विरोधी दोनों को एक नया मुद्दा मिल गया है। इस पर सबसे पहले राहुल गांधी ने सवाल किया और कहा, मोदी झूठ बोल सकते हैं, विज्ञान नहीं।
बात भी सही है। लेकिन, किसके तथ्यों, आंकड़ों और सर्वे के रिर्पोट पर यह चर्चा हो रही है यह भी जानना जरुरी हैं। लेकिन इसके पहले आपसे एक सवाल है, और सवाल यह कि जिस संगठन ने अपने आंकड़ों में बताया है की भारत में 47 लाख लोग मरे हैं (जो पूरी दुनिया के आंकड़ों का 1/3 है) क्या उस संस्था पर आपको विश्वास है/ क्या यह संस्था विश्वशनीय है।
अगर आपको कोई कन्फ्यूजन है तो याद कीजिए कोरोना का बड़ा रूप आज से लगभग एक साल पहले ही जा चुका है। इतने समय बाद इस तरह के रिर्पोट का आना भी एक सवाल है। दूसरा, कोरोना जब नवंबर 2019 में चीन में तबाही मचा रहा था तब WHO चीनी करेंसी से अपना आंख तोपे चिल कर रहा था। आपको यदि उस समय के बयान याद हों, WHO ने कहा था, कोरोना संक्रमण फैलाने और एक शरीर से दूसरे में जाने वाला नहीं है।
एक साल बाद वुहान लैब और चीन में WHO की टीम जांच करने गई थी, टीम क्या रिपोर्ट लाई देखा है किसी ने? चीन के खिलाफ एक भी बड़ा बयान WHO ने दिया हो या अपने अधिकार क्षेत्र की कोई कार्यवाही की हो, याद है? नहीं!
क्यों? क्योंकि उसे ऐसा करना ही नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन एक बिका हुआ, गैरजिम्मेदार, और चाटुकार संस्था है, जिसकी खायेगा उसकी गाएगा।
अब बात आती है क्या भारत में सरकार के आंकड़े के अनुसार 4.8 लाख लोग ही कोरोना से मरे?
जवाब है, नहीं!
क्योंकि हजारों शवदाह गृहों में महीनों तक लागातार जलती लाशें, भारत के हर गली, मुहल्ले और गांव से निकलने वाली चीख, अस्पतलों के अंदर और बाहर जीवन या मौत का इंतजार करते परिजन 4.8 लाख से ज्यादा थे। सरकार के आंकड़े से कहीं अधिक लोग मरे और यह आंकड़ा 7 लाख तक हो सकता है लेकिन 47 लाख नहीं।
7 लाख के भी अपने कई कारण है।
पहला, माहामारी की जानकारी हमें ही नहीं पूरी दुनिया को काफी देर से मिली, चीन ने पहले चीजों को छुपाया, हजारों की संख्या में लाशों को जमीन में गाड़ना शुरु किया और जब मामला हाथ से निकल गया तो दुनिया को दबे जुबान से बताया। यहां भी WHO की चुप्पी दिखी।
हालंकि सरकार का लोगों को सलाह और दिशानिर्देश बहुत तेजी और समय रहते मिले लेकिन हमारे देश की आंतरिक व्यवस्था, रोज़गार के साधन, लोगों का जीवन स्तर जिस प्रकार का है। वहा बस “ताली और थाली” से काम नहीं बनने वाला था।
दुसरा, भारत के पास बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी उस स्तर की नहीं है, जिसकी सरकार बात करती है। आज भी अचानक कोई समस्या आन पड़े तो जानता लाचार और सरकार बेचारा दिखेंगे।
इसलिए विश्व स्वस्थ्य संगठन जैसी संस्था के रिर्पोट पर विश्वास करना एकतरफा मानसिकता को बढ़ावा देना होगा, क्योंकि यह रिपोर्ट ऐसे समय में आया जब भारत रूस युक्रेन विवाद पर अमेरिका की नाफरमानी की है और वैश्वीक व्यापार में तेज़ी से बढ़ रहा है।
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Disclaimer: यह लेखक के अपने विचार है, फिर भी कोई आहत होता है तो हम माफी चाहते हैं।
आदित्य मिश्रा
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