हमारा प्रयास भारतीए फिल्मों में भारतीयता को समाहित करना है: केजी सुरेश
कुलपति ने कहा, सिटीजन पत्रकार वैसे ही नहीं हो सकता जैसे सिटीजन डॉक्टर नहीं होता, सिटीजन इंजीनियर नहीं होता, सिटीजन आर्किटेक्ट नही होता।
Aditya Mishra
Bhopal, Madhyapradesh
माखनलाल चर्तुवेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में चतुर्थ चित्रभरती फिल्म महोत्सव के आयोजन के मौके पर कुलपति माननीय के ०जी० सुरेश से हमारी सहयोगी कुमकुम प्रसाद से खास बातचीत की। इस साक्षात्कार के मुख्य भाग हम आपके साथ साझा कर रहे हैं।
प्रश्न: चित्र भारती फिल्म उत्सव के आयोजन का क्या उद्देश्य है?
उत्तर: देखिए, चित्र भारती का पिछला 3 संस्करण दिल्ली, इंदौर, अमरावती में हुआ था जिसका आयोजन इस बार भोपाल में हो रहा है। इसका उद्देश्य भारतीयता को भारतीय सिनेमा में लाना है। हमने अपनी फिल्मों में पश्चिमी देशों से नकल करके अश्लीलता को समाहित कर लिया है और आज स्थिति यह है कि अपने परिवार के साथ बैठकर फिल्में नहीं देख सकते। हमारा उद्देश्य है, टॉयलेट मंगल मिशन, पैडमैन जैसी संदेश देने वाली फिल्में हमारी इंडस्ट्री में बने और इसी तरह के ‘इको सिस्टम’ (Ecosystem) को हम विकसित करना चाहते हैं।
प्रश्न: फिल्मोत्सव का अयोजन सिनेमा और पत्रकारिता के छात्रों के लिए कैसे लाभदायक होगा?
उत्तर: पहले से ही हम फिल्म से संबंधित तीन कोर्सेज चला रहे हैं। इस फिल्मोत्सव के उद्घाटन के अवसर पर माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी एक नए फिल्म विभाग का उद्घाटन भी करेंगे। इस फिल्मोत्सव में हम प्रदेश भर से लोगों को आमंत्रित कर रहे हैं। इस तरह का एक्सपोजर आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगा इसलिए छात्रों के लिए यह आयोजन एक बड़ा एक्सपोजर उनको देगा।
प्रश्न: डिजिटल पत्रकारिता का कोर्स आप अपने विश्वविद्यालय में चलाते हैं लेकिन डिजिटल का जमाना होने के कारण आज हर व्यक्ति पत्रकारों का काम कर रहा है, डिजिटल पत्रकारों के लिए क्या यह संकट है?
उत्तर: देखिए, इस तरह के लोगों को हम कंटेंट क्रिएटर (Content Creators) या सिटीजन कम्युनिकेटर (Citizen Communicator) कह सकते हैं। सिटीजन जर्नलिस्ट (Citizen Journalists) शब्द से मुझे परहेज है क्योंकि जनरलिज्म एक प्रोफेशन (Profession) है जिसके लिए प्रोफेशनल ट्रेनिंग की जरूरत होती है। हम छात्रों को बस कैमरा और माइक पकड़ना नहीं सिखाते बल्कि उन्हें भारत का संविधान पढ़ाते हैं, आईपीसी और सीआरपीसी के नियमों को सिखाते हैं, मीडिया कानून, अश्लीलता, अवमानना आदि सभी चीजों से अवगत कराते हैं जो कि सड़कों पर घूम रहे पत्रकारों में नहीं मिलता है। सिटीजन पत्रकार वैसे ही नहीं हो सकता जैसे सिटीजन डॉक्टर नहीं होता, सिटीजन इंजीनियर नहीं होता, सिटीजन आर्किटेक्ट नही होता।
प्रश्न: आपने भारतीए जनसंचार संस्थान दिल्ली (IIMC Delhi) में अपने कार्यकाल के दौरान काफी बेहतर काम किया, उस दौरान वहां के छात्रों का प्लेसमेंट (Placement) भी काफी अच्छा रहा माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में प्लेसमेंट के लिए आप की क्या योजनाएं और कार्य कर रहें है?
उत्तर: देखिए, उस समय कोरोना नहीं था। फिर भी हमारे यहां कई लोग प्लेसमेंट के लिए आए। हम लगातार जनसंपर्क विभाग से बात कर रहे हैं। सरकारी विभागों के संपर्क में हैं। सभी हमारी तरफ आकर्षित भी हो रहे हैं और आने के लिए तैयार हैं। वर्तमान में आयोजित फिल्मोत्सव के उद्देश्यों में यह भी शामिल है कि हमारे छात्र लोगों से जुड़े, दुनिया को देखे, दुनिया उनको देखे। हमारे विश्वविद्यालय की ब्रांडिंग (Branding) होगी। हमारे यहां फिल्म अध्ययन की भी देशभर में काफी चर्चा है। इस तरह के हर संभव प्रयास हो रहे हैं। फिर भी सच्चाई है कि मंदी के दौर में कुछ समस्याएं हैं।
प्रश्न: बिसनखेड़ी स्थित नए कैंपस (#MCU_New_Campus) में जाने की तैयारी है, छात्रों के लिए क्या-क्या सुविधाएं हैं?
उत्तर: अभी तो सुविधाएं विकसित हो रही हैं। विश्वविद्यालय में शिफ्ट होने के बाद हम जरूरत के अनुसार और अधिक सुविधाओं को विकसित करेंगे। हमारी प्रमुख योजनाओं में अत्याधुनिक स्टूडियोज (Modern Studios) के निर्माण के साथ केंद्र सरकार के सहयोग से हम एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन (Community Radio station) खोलेंगे और इसके साथ ही पंडित जुगुल किशोर शुक्ल (Pandit Jugul Kishor Shukla) की स्मृति में राष्ट्रीय मीडिया संग्रहालय (National Media Musiam) की स्थापना कर रहे हैं जो देशभर के पत्रकारों के लिए बहुत कुछ सीखने का केंद्र होगा। इसके अलावा हम रविंद्रनाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन जैसे माहौल विकसित करना चाहते हैं। आप हमारे नए कैंपस से बड़ी तालाब को सीधे देख सकते हैं। नए कैंपस में हमारी यही कोशिश रहेगी कि हमारे छात्र भारतीय माहौल में शिक्षा ग्रहण कर सकें।
प्रश्न: आपके जीवन का आइडियल कौन रहा है?
उत्तर: (विवेकानंद की प्रतिमा की तरफ़ इशारा करते हुए) विवेकानंद जी से मैं काफ़ी प्रभावित रहा हूं। मैं अपने शुरुआती दिनों से ही विवेकानंद को फॉलो करता आया हूं। वैसे तो भारत में तमाम महापुरुषों से हमें सीखने को मिलता है। अनवरत सीखने की प्रेरणा विवेकानंद जी से ही मिलती है। और इसी ललक के कारण हम बिफोर गूगल (Before Google) के युग से आफ्टर गूगल (After Google) में आसानी से अपना काम कर पा रहें हैं।
प्रश्न: गैर हिंदी भाषी क्षेत्र (South India) से आने के बाद भी आपकी हिंदी इतनी बेहतर है, आप अच्छा लिख और बोल भी लेते हैं यह कैसे संभव हो पाया?
उत्तर: हिंदी तो हमारी राजभाषा है। मैं समझता हूं कि हर भारतीय को हिंदी सीखनी और बोली चाहिए। कोई भी भाषा सतत प्रयास कर के सीखा जा सकता है। मेरे साथी अच्छी बात यह रही है कि मैं उत्तर भारत के क्षेत्रों में अधिक समय रहा हूं। मैं दिल्ली रहा इसलिए मेरे लिए हिंदी सीखना आसान रहा है।
धन्यवाद आपका।
पुरा इंटरव्यू youtube पर देखने के लिए क्लिक करें
चित्रभारती के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय फिल्म महोत्सव का आयोजन