होली का रंग कितना गहरा
यह दिन हिंदू मास के चैत्र प्रतिपदा यानि हिंदू नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है।
Aditya Mishra:
वैसे तो हिंदू समाज सालों भर त्योहारों के रंग में रहता है, लेकिन होली का रंग हर उम्र पर एक समान चढ़ता है। यह सबके लिए बराबर के खुशी का होता है, इस त्योहार पर सामाजिक बंधनों, मर्यादाओं, रिश्तों की पाबंदियोंऔर उम्र के फासले को कुछ समय के लिए सब त्याग देते हैं। क्योंकि महादेव भी अपने पद की मर्यादा के मान को दरकिनार कर अपने भक्तों और सहमित्रों में होली खेलते हैं। होली का इतिहास एक है कहानी अनेक, मनाने के तरीके देश भर में एक, आश्चर्य तो तब होता है कि, जगह बदलने पर भी इसके प्रारूपों में कोई खास भिन्नता नहीं दिखती।
बच्चों के लिए यह सबसे बडे़ उत्साह का दिन होता है, यह दिन खानपान, पहनावा और हुडदंग के कारण ही बच्चों को उत्साहित करता है। शहरों में बच्चों की होली तो गुलाल और रंगों तक ही सीमित रहता है। लेकिन, गावों में यह होली खेतों की मिट्टी, होलिका दहन के राख, गोबरों और कीचड़ तक को अपने बेड़े में शमिल कर लेते हैं।
बच्चों की तरह युवा मन और चरित्र निर्मल और पवित्र नहीं होता। इस मन में रिश्तों की मर्यादा थोडी सीमित हो जाती है। यह वर्ग जश्न मनाने के परंपराओं में पारंपरिक औषधियो से बढ़कर वनस्पति मदिरा जैसे भांग, महुआ आदि का सेवन करता है। नए दौर में यह शराब और अश्लीलता तक पहुंच चुका है। हालंकि यह सभी स्थितियां ग्रामीण क्षेत्रों के मिश्रित समाजों में देखने को मिलती है।
वृद्ध और महिलाएं इस त्योहार को सबसे मूल रूप में मानती हैं। बिहार और पूर्वांचल के क्षेत्रो होलिका दहन मे अनाज और उनसे बने पकवान समर्पित करने की परंपरा है, होली के दिन प्रातः काल में भगवान को गुलाल और प्रसाद समर्पित किया जाता है। और इस दौड़ में यह सब महिलाओं के प्रयासों से ही संभव हो पाता है।
इन क्षेत्रो में होली के दिन शाम के समय होली गीत गाया जाता है। बिहार के कई क्षेत्रो मे दर्जनों पारंपरिक होली गीत सुनने को मिलेंगे। हालंकि पिछ्ले 30 वर्षो में इस सामुहिक गायन से लोग पीछा छुड़ा रहे है।
इसके भी कई कारण है, एक तो ऑडियो प्लेयर्स का निमार्ण और विकास और दूसरा यह कि गांवों में इस विधा का अगले पीढ़ी को हस्तांतरित ना करना, तीसरा कारण देखें तो यह गांवों में लोगों की कमी भी है।
जो भी हो….होली सबको एक समान सबको रंगता है अपने रंगों से।
० होली की कहानी (story of Holi)
प्रह्लाद और होलिका की कहानी तो जनप्रचलित है। प्रह्लाद का पिता हिरणकश्यप स्वयं देवता बनने और प्रजा से देवता मनवाए जाने के लिए पागलों की तरह अत्याचार करता इस क्रम में उसने प्रह्लाद को हाथी से कुचलवाया, उंचे पहाड़ से बेतवा नदी में फेंका, प्रहलाद फिर भी बच गए। प्रह्लाद विष्णु भक्त थे और अपने पिता को भगवान मानने से मना किया।
अंतिम उपाय के रूप मे हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन के साथ उसे अग्नि में दहन करने का कुत्सित प्रयास किया क्योंकि उसे वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती।
लेकिन वरदान में शर्त यह था कि जब होलिका अकेली अग्नि में प्रवेश करेगी, तभी अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचायेगी।
हालंकि होलिका अकेले आग में प्रवेश नही की और भस्म हो गई, विष्णुभक्त प्रह्लाद यहां भी बच गए। इस त्योहार को भगवान विष्णु के भक्तों के विजय के रूप में भी मनाने की परंपरा है।
यह दिन हिंदू मास के चैत्र प्रतिपदा यानि हिंदू नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है।
होली की सबको शुभकाननाएं
Happy Holi