यूक्रेन में मार्शल लॉ को एक महीने के लिए बढ़ाया गया, जानिए क्या होता है मार्शल लॉ, भारत में क्या है इसके प्रावधान

राष्ट्रपति की वेबसाइट के अनुसार 24 मार्च से अगले 30 दिनों के लिए मार्शल लॉ का विस्तार करने का प्रयास किया गया है।

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ADITYA MISHRA:

युद्ध की परिस्थितियों में विषेश सुधार नहीं देखते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदीमीर ज़ेलेंस्की ने सोमवार को संसद में विधेयक पेश किया जिसके अंतर्गत एक महीने के लिए मार्शल लॉ को और बढ़ा दिया गया। इस विधेयक के अनुसार मार्शल लॉ को 30 दिनों तक विस्तार करने का फैसला लिया गया है। राष्ट्रपति की वेबसाइट के अनुसार 24 मार्च से अगले 30 दिनों के लिए मार्शल लॉ का विस्तार करने का प्रयास किया गया है।

० क्या होता है मार्शल लॉ

आपात या विषेश परिस्थितियों में जब किसी देश की सेना शासन व्यवस्था को अपने हाथ में ले लेती है, तब जो नियम प्रभावी होते हैं उन्हें सैनिक कानून या मार्शल लॉ (Martial law) कहा जाता है। कभी-कभी युद्ध के समय अथवा किसी क्षेत्र को जीतने के बाद उस क्षेत्र में मार्शल लॉ लगा दिया जाता है। उदाहरण के उदाहरण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी और जापान में मार्शल लॉ लागू किया गया था। इसके अलावा प्राय: तख्ता पलट के बाद भी मार्शल लॉ लगा दिया जाता है। हाल ही में म्यांमार में सेना से तख्ता पलट किया था और मार्शल लॉ लागू कर दिया था।

कभी-कभी बहुत बड़ी प्राकृतिक आपदा आने पर भी मार्शल लॉ लगा दिया जाता है (किन्तु अधिकांश देश इस स्थिति में आपातकाल (Emergency) का रास्ता इख्तियार करते हैं।)

मार्शल ला के अंतर्गत कर्फ्यू (curfew) आदि विशेष कानून होते हैं। प्राय: मार्शल लॉ के अंतर्गत न्याय देने के लिये सेना का एक ट्रिब्यूनल नियुक्त किया जाता है जिसे कोर्ट मार्शल कहा जाता है। इसके अन्तर्गत बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका जैसे अधिकार निलंबित किए जाते हैं।

० भारत में क्या है मार्शल लॉ के प्रावधान (#What_are_the_provisions_of_martial_law_in_ India)

भारत में फौजी कानून संबंधी उल्लेख केवल 34वीं (Article 34) धारा में है, जो किसी विशेष क्षेत्र में फौजी कानून उठा लिए जाने के बाद क्षतिपूर्ति अधिनियम की व्यवस्था करती है। हालंकि
स्पष्ट सांवैधानिक निर्देश के अभाव में यह विवादास्पद है कि फौजी कानून की घोषणा का अधिकारी कौन है।

किंतु फौजी कानून से मिलता जुलता ही धारा 359 (1) (Article 359 1) के अंतर्गत राष्ट्रपति के पास अधिकार होता है जिससे वह धारा 21 और 22 के अंतर्गत अधिकारों का न्यायिक निष्पादन स्थगित कर दे सकते है। यह समझा जाता है कि यह मूलत: फौजी कानून का ही रूप है। संविधान की धारा 352 के अंतर्गत संकटकाल की घोषणा का मौलिक अधिकारों पर प्रभाव न्यूनाधिक मात्रा में फौजी कानून जैसा ही है।

इस प्रकार धारा 358 के अंतर्गत जब तक संकटकालीन स्थिति कायम रहती है, कार्यपालिका (Executive) को धारा 19 की व्यवस्थाओं के उल्लंघन का अधिकार रहता है। राष्ट्रपति द्वारा धारा 359 (1) के अंतर्गत संकटकालीन अवधि तक या आदेश में उल्लिखित अवधि तक के लिए दूसरे मौलिक अधिकार भी स्थगित किए जा सकते हैं।

० युक्रेन में क्या है स्थिति

दरअसल, यूक्रेन में युद्ध 24 फरवरी को शुरू हुआ जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विशेष सैन्य अभियान शुरू किया। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक यूरोपीय राज्य पर सबसे बडी सैन्य कार्रवाई थी। यूक्रेन द्वारा पश्चिमी देशों के करीब जाने और नाटो की सदस्यता लेने की जिद पर अड़ा होने के बाद रूस ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया।

यूक्रेन और रूस के बीच हालात बिगड़ने के बाद बीते 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन के दो क्षेत्रों को गणराज्य के रूप में मान्यता देने के साथ ही शांति सेना के रूप में अपने सैनिकों को उतार दिया। रूस की इस कार्रवाई से अमेरिका समेत अन्य नाटो व यूरोपियन यूनियन के देशों में खलबली मच गई।

ब्रिटेन ने रासायनिक व जैविक हथियारों का इस्तेमाल की आशंका व्यक्त की

ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने सोमवार को आशंका जताई है कि रूसी सैनिकों पर यूक्रेन रसायनिक हथियारों के इस्तेमाल की योजना बना सकते है। अमेरिकी अधिकारियों ने भी इसी तरह के बयान दिए हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने यूक्रेन में रासायनिक हथियार प्रोग्राम से किया इनकार

हालंकि संयुक्त राष्ट्र (UN) ने साफ किया है कि उसके पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यूक्रेन के पास जैविक हथियार कार्यक्रम है। जबकि वाशिंगटन और उसके सहयोगियों ने रूस पर अपने जैविक या रासायनिक हमलों को शुरू करने के संभावित प्रस्ताव के रूप में अप्रमाणित दावे को फैलाने का आरोप लगाया। उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस को चेतावनी दी कि अगर उसकी सेना यूक्रेन के खिलाफ रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करती है तो वह गंभीर कीमत चुकाएगा।

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