शहीद-ए- आजम भगत सिंह का समूचा जीवन उनके साहस एवं देश प्रेम को कहानियों से भरा पड़ा है। शहीद-ए-आजम द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल से परिवार और साथियों को लिखे गए पत्र आज भी उनके महान व्यक्तित्व की कहानी बयां करते हैं। इस बात का उल्लेख शहीद-ए-आजम भगत सिंह को अपना आदर्श मानने वाले हर्षित तोषनीवाल ने शहीद ए आजम भगत सिंह पर गलत टिप्पणी के दौरान ये बात हर्षित ने सभी के सामने रखी उन्होंने बताया कि 19 मार्च 1930 को शहीद-ए-आजम ने अपने पिता किशन सिंह को एक पत्र लिखा था जिसमें वतन के लिए उनकी मोहब्बत किसी को भी अपना बना लेती है। उन्होंने बताया कि उर्दू में लिखे गए इस पत्र का विवरण शहीद ए-आजम द्वारा जेल जीवन के समय लिखी गई डायरी के प्रकाशित अंशों में भी है। उन्होंने बताया कि शहीद-ए-आजम ने लिखा था कि ” पूज्य पिता जो मेरी जिदगी का मकसद आजाद हिंद के सिद्धांत के लिए कुर्बान हो जाना है इसलिए मेरी जिंदगी में आराम व दुनियादारी का कोई महत्व नहीं है। शायद आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था तो बापू (दादा अर्जुन सिंह) ने मेरा नाम रखने के समय ऐलान किया था कि मुझे देश सेवा के
लिए दान कर दिया है इसलिए मैं उस समय की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूं।” हर्षित ने शहीद ए आजम वीर भगत सिंह की पोती मंजुला द्वारा लिखे लेख को पढ़कर बताया कि बचपन में शहीद-ए-आजम भगत सिंह कां नामकरण करने के समय उनके दादा अर्जुन सिंह ने संकल्प लिया था कि वह अपने इस पोते को देश की सेवा के लिए समर्पित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि फांसी के एक दिन पहले 22 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम ने अपने साथियों के नाम पत्र लिखा था और अपने दिल की बात रखते हुए कहा कि “जीने की इच्छा मुझ में भी होनी चाहिए जिसे मैं छिपाना नहीं चाहता लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि में कैद या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों तथा कुर्बानियों ने मुझे ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा की जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा में हरगिज नहीं हो सकता। अगर मैं फांसी से बच गया तो क्रांति का प्रतीक फीका पड़ जाएगा लेकिन दिलेर ढंग से हंसते- हंसते मेरे फांसी पर चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों को भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश के लिए कुर्बानी देने वालों की संख्या बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना, तमाम शैतानी शक्तियों के बलभूते की बात नहीं रह जाएगी।” उन्होंने खुलासा करते हुए बताया कि शहीद-ए-आजम हिंसा के समर्थक हरगिज नहीं थे जिसका उल्लेख उन्होंने इस तरह किया था कि क्रांति का मतलब रक्त संघर्ष में नहीं है. क्रांति पिस्तौल और बंदूक को संस्कृति नहीं है तथा इसका मतलब है जुल्म करने वाली अंग्रेजो की सता बदलनी चाहिए।

हर्षित तोषनीवाल ने बताया कि जिस तरह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने शहीद ए आजम वीर भगत सिंह के बारे में ये कहा कि ” भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी नहीं बल्कि आज की परिभाषा में एक आतंकवादी है” इस बात का हर्षित ने काफी रोष जताया और हर्षित ने बताया कि इस कथन पर सरकार(पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की) को माफी मांगनी चाहिए। वो एक क्रांतिकारी को इस तरह आतंकवादी नहीं कह सकते। शहीद ए आजम वीर भगत सिंह ने हमेशा जनता के हितों और स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी है। शहीद भगत सिंह आज भी हम सभी युवा शक्ति के दिलों में जिंदा है। शहीद ए आजम वीर भगत सिंह ने अपने राष्ट्र को बचाने के लिए अपने कही साथियों के साथ अपने प्राण न्यौछावर कर दिए और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का उन्हें आतंकवादी कहना हरगिज गलत है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार को माफी मांगनी चाहिए।