मैं भी पागल हूं और पागल सारा जमाना है – सजल गुप्ता

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लगता है संसार पागलखाना है
मैं भी पागल हूं और पागल सारा जमाना है
अंधकार चारों ओर है
हर तरफ शोर है
मैं पढ़ रहा अवस्था में
जीवन बीतता रहा
दिन बीत रहे थे


रातें गुजर रही थीं
जीवन में बेबसी थी लाचारी थी मजबूरी थी
गुजर रहा था मेरा जीवन
बेबसी में लाचारी में मजबूरी में
मेरा जीवन मौत मांग रहा था
मौत जीवन मांग रही थी
अचानक मैं जगा और देखा
आई है कि वह लौट आई है
पीछे मुड़ा और देखा कि किसका साया है
मेरे बुझे हुए दिल में किसीने दीपक जलाया है
पीछे मुड़कर देखा तो पता चला कि वह लौट आई है 
ये जो चमक रही है आखिर किसकी परछाई है
हां वही मेरी अक्षरा मेरे पास आई है
वह कोई और नहीं थी वह ही थी
फिर वह आई कहने लगी कि मुझे जाना ही था मेरी मजबूरी थी
पर हम मिलेंगे पर हम मिलेंगे आज की टॉप पर मोहब्बत टॉप पर और पत्नी टॉप पर
रास्ता दिखाएंगे कल की आशिकों को हम रास्ता दिखाएं कल की दुनिया को की मोहब्बत करो तो ऐसे करो

सजल गुप्ता,कवि,धर्म विशेषज्ञ
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