बलात्कार शब्द पढ़ने के बाद ही मन में कुछ छवियां घुमने लगती हैं
हम इस विषय पर ध्यान नहीं देते हैं या यूं मान लें की हमने कभी क्रांति नहीं की हां बिल्कुल आपको ये पढ़कर लग रहा होगा की कैंडल मार्च से लेकर जस्टिस मांगने तक का सारा प्रयास निरर्थक हैं? ज़ी हां बिल्कुल
ये सभी निरर्थक ही मानें जाएंगे तब-तक जब-तक हम इसकी तह को नहीं पकड़ते और न इसपर विशेष रूप से ध्यान दें तब-तक सब बेकार हैं
सर्वविदित है कि हम आधुनिक युग में हैं पर हम आधुनिक को सही रूप से
पहचान नहीं पा रहें हैं आधुनिकता का आरंभ या उसका उपयोग हमारे कार्यों को आसान बनाना था पर कहीं न कहीं हम उसके शिकार हो रहें हैं
आप स्वयं यह विचार किजिए की आपके स्क्रीन पर एक किशोरी अर्धनग्न अवस्था में अश्लीलता का खुलेआम प्रदर्शन कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ दूसरी किशोरी कुश्ती में पहलवानों से मलयुद्ध कर देश को स्वर्ण पदक एवं जोश से भर रही हैं दोनों में बहुत अंतर हैं जो सीधे-सीधे हमारे दिमाग पर असर करता है पहलवान से लेकर अश्लील हरकत करने वाली किशोरी तक में एक बात की समानता है दोनों के कपड़े छोटे ही हैं पर उनके कार्य हमारे विचार का निर्माण कर रहीं हैं।
स्त्री अपने मूल्यों को नहीं समझ रही –
चार ऐसी स्त्रियां जिन्होंने देश को स्वर्ण युग दिया हो उसका हवाला देकर
बचना या अपने कृत्यों के लिए तथाकथित अधिकार का पा लेना तो बहुत आसान पर आज कि महिलाओं को इस बात पर गंभीर रूप से विचार करना चाहिए की उन्होंने जब – जब भी रानी लक्ष्मीबाई हों माता सीता हों या मां दुर्गा की तुलना स्वयं से की है तो अपने भीतर झांककर यह देखा की वो एक प्रतिशत भी उनके तरह हैं या नहीं आज के महिलाओं को यह विचार करना चाहिए की जब आप अर्धनग्न अवस्था में खुले आम सोशल मीडिया पर अश्लील हरकत कर रहीं हैं तो आप समाज में क्या परोस रहीं हैं और आपने यह रास्ता चुना ही क्यूं क्योंकि इस समाज में सफलता को धन से तोला जाता हैं जब आप उन चार महिलाओं का हवाला देती हैं तो आप उनके तरह बनने की कोशिश क्यूं नहीं करती
अपने भीतर क्रांति क्यूं नहीं करती ,क्यूं नहीं लड़तीं जिससे बेहतर समाज का निर्माण हो सके।
बालात्कार का कारण –
हम देखावटी की दुनिया में इतने मशगूल हैं की हम सत्य का बोध ही नहीं है और वो दुनिया ऐसे हमपर हावी है की हम आदर्श भी वैसे ही लोगों को मान रहें हैं जब आदर्श इतने नीचले दर्जे के होंगे तो समाज कैसा होगा
हमें इसके लिए लड़ाई लड़नी होगी किसी अस्त्र से नहीं बल्कि सशस्त्र से
हमें पहचानना होगा अश्लीलता का मूल हमें थमानी होंगी पीढ़ीयो को अश्लील के बदले सत्य तब जाकर हम कहीं एक बेहतर समाज का निर्माण कर पाएंगे।
